रविवार, 10 जुलाई 2016

जयप्रकाश 'फ़क़ीर' की प्रेम कवितायें ....

 

प्रतिष्ठित पत्रिका 'अनहद' में जयप्रकाश 'फ़क़ीर' की इन कविताओं ने मुझे बहुत प्रभावित किया ... अरसे बाद प्रेम की ऎसी उद्दात्त अनुभूतियों से गुजरने का अवसर मिला ... सोचा कि 'सिताब-दियारा ' के पाठकों के लिए भी इन्हे प्रस्तुत किया जाए ....

                                           तो प्रस्तुत है जयप्रकाश 'फ़क़ीर' की ये प्रेम कवितायें ....
 
 
1. मा-शीन (ma-chine)

उनके आँखों में नहीं ,
शब्दों में
आंसू थे बेशुमार .
कारखाने थे आंसू के उनके पास .
'
माँ '
कहते और जार जार रोते
भाषा के भीतर पानी पानी होते हुए !
यह अफ्रीका नहीं था .
वे
'
माँ ' माँ माँ
कहते और क्लिटेक्टोमी करते
चाकू की याद दिलाते .
भाषा से धार का काम लेते
और
वे जार जार रोते
मा मा मा कहते हुए
 
2. करेजा *,

कैसी हो –
पूछना चाहता हूँ ,
और अपने नर्वस वीकनेस के कारण रो पड़ता हूँ।
36
की उम्र में रोना शोभा नहीं देता
तो तुम्हारी यादो की सरगोशी से घबराकर
कविताएँ लिखता हूँ ।
जब पीछा करता है माजी
तो शब्दों के ओट हो लेता हूँ ,
भागना चाहता हूँ और पकड़ लिया जाता हूँ
कि तुम्हारी याद को थामे
तुम्हारे नाम का पहला अक्षर मेरे की रिंग में ही नहीं ,
हर उस भाषा है जिसे मै जानता हूँ !
तुम्हारी मीठी आवाज़ कही नहीं है अब ,
जबकि सुनने की कोशिश करता हूँ कली के चटकने का स्वर भी ।
रक्त में शर्करा कम है ,जीवन में भी ।
पैथोलॉजी सेंटर का लैब बॉय
जब उंगली में सुई चुभोता है
भक से खून निकल आता है
ध्यान से देखता हूँ ,वह सुई ही है कांटा नहीं ,
फिर भी याद आ जाता है कांटा ,
जो चुभ गया था
तुम्हारा दुपट्टा छुडाते हुए ।
फूल लेने गयीं थीं
गेसू ए दराज़ के वास्ते
तुम देऊ दूबे की फुलवारी ,
वह कांटा अब उंगली में नहीं दिल में चुभता है ।
मेरे खून से भींगा तुम्हारा दुपट्टा अब भी लाल है या .....सोचता हूँ बारहाँ...
तुम से भागता हुआ तुम्ही तक आ पहुंचता हूँ ।
पृथ्वी ही नहीं दुःख भी गोल है ।
''
नबी की याद है सरमाया गम के मारो का''
नआत सुनता हूँ दिन रात
फर्ज़ सुन्नत के जुज़ नफ्ल नमाज़ भी पढता हूँ दो रकात
मगर नहीं कटता ..नहीं ही कटता ..
गम ए फुरकत ए बदमिजाज !


(tadpole
फिल्म में नायिका नायक को दिल की जगह जिगर कह के पुकारने को कहती है .करेजा भोजपुरी और पुरबिया बोली में जिगर को कहते है और अत्यंत प्रिय को करेजा बुलाते हैं -loosely translated -dearest )
(नफ्ल नमाज़नमाजे जिन्हें पढना इतना जरुरी नहीं है मगर अतिरिक्त सबाब के सबब पढ़ी जाती है .बहुत धार्मिक होने की निशानी)

3. आज के नाम ,आज के गम के नाम

यह जो उफ़क पर चाँद है ,
कभी उस समद्विबाहु त्रिभुजाकार झंडे में था
जो मुहर्रम पर
मेरे लिए इदरीश मियां ने सिल दिया था ,
इदरीश अंसारी दर्जी
जो मुज़फ्फरनगर के बाद
होंठो को सी लेने के बाद कुछ नहीं सिलते !
अब
मेरे हाथ में वह लम्बा डंडा नहीं है
डंडे में वह झन्डा नहीं है
झंडे में महताब नहीं है
मुज्ज़फरनगर के बाद
चाँद आसमान में है !
लव जेहाद के तानो से उकता
इस्लाम उस चाँद में मुकीम है जो खुर्शीद के गुरूब
के ऐन बाद
अपने आप उग आया है
आसमान में
चाँद जो किसी के महबूबा का चेहरा नहीं है ,
चाँद जो जली रोटी नहीं है ,
चाँद जो टेढ़ा नहीं है !
चाँद जिसे
रात को चुपके से डरते हुए हरे कपड़े की जगह
नीले आसमान में टांक दिया है
इदरीश चचा ने
वह चाँद में दाग नहीं है
दहशत जदा हाथो की थरथराहट है
जो सिलाई /तुरपई में नमूदार है .
जोश मलीहाबादी पाकिस्तान चले गए
पाकिस्तान से उर्दू लुगत में
फिर जन्नत और जहन्नुम के
नोमैंसलैंड पुल -ए- सिरात में
कि वे खुदा की तरह मुन्तकिम नहीं थे .
उनके जाने के बाद कुछ नहीं बचा ,सिवा एक सवाल के !
कौन आयेगा कमर का नाज उठाने के लिए ?
चांदनी रातो को जानू पर सुलाने के लिए ?*
फ़िलहाल
आसमान में चाँद है
चाँद में इस्लाम है
इस्लाम में इदरीश मिया की जिन्दा देह और मरी रूह है
मरी रूह में ढही मस्जिद है
जिसका नाम बाबरी है
ढही मस्जिद में एक जिद है
जिद का नाम फ़क़ीर है .
फ़क़ीर का नाम मोमिन है
मोमिन का नाम मुज्जफरनगर है
मुज्ज़फरनगर में खतौली है
खतौली का नाम भारत है
भारत किसका नाम है ?
(*जोश मलीहाबादी की गजल की सतरें )
4. नहीं दीखता हूँ मै


जैसे
छोटे फॉण्ट में
माँ
के ऊपर चंद्रबिंदु
नहीं दीखता !
मगर मै
अब भी
कब भी
तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ ।
हूँ !




5. आंख का पसीना

कई दिन बाद
तुझे देख कर लगा
मै भी रो सकता हूँ
रो ही सकता हूँ ।

कार की स्टीयरिंग पर टिका
तुम्हारा गोल थका माथा
देखता हूँ
7860
किलोमीटर दूर से ,
और रो पड़ता हूँ ।
तुम्हारा प्यार याद है
तुम्हारे बुडबक चेहरे में ढंका हुआ ,
तुम प्रेमिका नहीं भी होतीं
तो बहिन होतीं।
जुदाई तो हर हाल में झेलनी थी,
आंसू आने थे हर हाल में
थक गई हैं आँखे ,
आंसू मेरे,
मेरी ,
जो तेरी है ,आंख का पसीना हैं .

6. सबसे बड़ा सत्य

रात,सितम्बर ,तूफान सब आ के
चले गए
नींद
तुम्हारी याद की तरह न आई न गई
इतना नाकिस हूँ
कि सिर्फ प्रेम कवितायेँ लिखने को जी
चाहता है
तुम्हारी तस्वीर में
तुम्हारे काले बाल देखता हूँ
पनीले होंठ भी
और कुछ देर उदास होकर
स्ट्रेचर पर दुःख की तरह पसर जाता हूँ !
लौट जाना चाहता हूँ,जहाँ से आया था
धर्म ,इस्लाम ,मार्क्सवाद
प्रेम ,न्याय ,तक़वा
दलित ,पिछड़ा ,ईसा ,शून्यवाद
........
से भी बड़ा सत्य है
क्रांति के फेर
में तुझे खो देना !
क्यों कि
तुझे खोने के बाद
पता चला तुम्हारी आंखे
बहुत हसीन हैं !
और तुम्हारा जेहन भी !


खतौली का नाम भारत है
भारत किसका नाम है ???


परिचय
जयप्रकाश ‘’फकीर ‘’
शिक्षा –बी टेक (आई आई टी ) , एम ए (इग्नू)
सम्प्रति –भारत सरकार में कार्यरत और  पटकथा लेखन


4 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " सिनेमा का गाना और ताऊ की कमेंट्री - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. फकीर की ये प्रेम कविताएँ अलग कहन की और अलग गढ़न की कविताएँ हैं. कवि को बधाई और आपका आभार.

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